________________
वि० २. संतमहिमा. भया है ऐसे ब्राह्मण, जो वेदकी आज्ञापूर्वक सदा यज्ञ कहिये नित्यानिहोत्ररूप यज्ञ करै हैं, तिसका जो फल शास्त्रमें कहा है, सो साधुके समीप गमन करतेहुए एक एक चरण पृथ्वीपर धारणकर होवे है ॥ १७॥ दोहा-दया आदि दे धर्म सब, जप तप संयम दान ॥ जो प्राप्ती इन सबनते, सो सत्संग प्रमान ॥१८॥
टीका:-जप कहिये गायत्री औ प्रणवादिकौंका यथाविधि पुनः पुनः उच्चारणरूप, तप. कहिये स्वधर्मका 'अनुष्ठानरूप, संयम कहिये निषिद्ध औ उदासीन कियात कर्मेंद्रियोंका निरोधरूप, दान कहिये प्रतिदिन द्रव्यादिकोंको परित्याग, एतद्रूप सर्व धर्मोंके कीये जो फल प्राप्त होवै है सो सत्संगरौं प्राप्त भया जान । काहेत दयाआदि सर्व धर्मोकी प्राप्ति सत्संगत होवै है ॥१८॥ • (२०) अव शिष्य कहे है। हे भगवन् ! अंतःकरणकी शुद्धिअर्थ सत्संगभिन्न तीर्थों का सेवन कर्तव्य है? या आकांक्षाके होयां कहै हैं: