________________
वि० २.
संतमहिमा. ___ अब शिष्य कहै है: सत्संगतै ज्ञानद्वारा मोक्ष प्राप्त होवै है यह आपने कहा सो मैने निश्चय किया, और धर्मादि जो तीन सो सत्संगसैं प्राप्त होवै हैं वा नहीं यह कहो ? तहां गुरु कहै हैं:दोहा-कामधेनु अरु कल्पतरु. जो सेवत फल होय ॥सत्संगति छिन एक मैं, प्रानी पावै सोय ॥१५॥ टीका:-हे शिष्य ! कामधेनु अरु कल्पतरुके चिरकालपर्यंत सेवन कीये तैं जो धर्म अर्थ कामरूप फल प्राप्त होवै है, सो फल सत्संगमैं प्राप्त जो पुरुष सो एक छिनमें पावै है ।। १५॥
पुनः शिष्य कहै है:-हे गुरो ! कल्पवृक्ष अरु कामधेनु यद्यपि बहुकाल सेवन कीयेतै फल देव है, यातें सत्संगके तुल्य नहीं, परंतु पारसमणि तो तत्काल फलप्रद होने सत्संगके तुल्य होवैगा ? या आक्षेपके मयां कहे हैं: