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३८ • विचारमाला. वि०२. प्राप्त होवै है यातें वह सफल है, इस अभिप्रायमैं मोक्ष अधिक कहा है ॥ १३ ॥
(१९) अब शिष्य कहे है:-हे भगवन् ! जगत अनर्थरूप जो पासी तिसकी निवृत्ति अर्थ अनेक कर्मका अनुष्ठान मैंने कियाबी है तथापि निवृत्ति न भयी, यात आप कोई अन्य उपाय कहो ? या आकांक्षाके होयां शिष्यकी उक्तिका अनुवाद करते हुए गुरु कहै हैं:दोहा-जगत मोहपासी अजर,कटे न आन उपाय ॥ जो नित सतसंगत करत,सहज मुक्त हो जाय ॥ १४॥
टीका:-जगत मोह कहिये अविद्या तत्कार्यरूप पासी सो यद्यपि अजर हैं औ अन्य कर्म उपासनारूप उपायकर निवृत्त नहीं होवै है तथापि जो पुरुष निरंतर सत्संग करता है सो सतसंगसैं ज्ञानद्वारा अनायासतें ता पासीतैं मुक्त होवैहै ॥१४॥