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वि० २०
संतमहिमा..
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स सुखके तुल्य है यह आप कहो ? या आकांक्षा के होयां इन संपूर्णात अधिक है, यह गुरु कहे है:
दोहा - सतसंगति सुख पलक जो, मु क्ति न तास समान ब्रह्मादिक इंद्रादि भू, निपट अल्प ये जान ॥ १३ ॥
टीका :- हे शिष्य ! पलमात्र सतसंगजन्य जो सुख है तिसके समान मोक्ष सुखभी नहीं तो ब्रह्मादिकोंका औ इंद्रादिकोंका औ कहिये चक्रवर्तीका सुख तो अतितुच्छ है, तिसके समान कैसे होवे, ऐसे जान. ननु परतंत्र औ परिच्छिन्न औ कदाचित होनेवाला ऐसा जो सत्संगजन्य सुख, तिसके समान सर्व वेदां तोंकर प्रतिपाद्य निरतिशय मोक्षसुख नहीं है, यह कथन असंगत है ? तहां सुनो:- सफल पदार्थ स्तुतिके योग्य होंवे है, निष्फल पदार्थ स्तुतिके योग्य होवै नहीं; मोक्ष से मोक्षांतर होवे नहीं, यातें निष्फल है औ सतसंग ज्ञानद्वारा अनेक पुरुषोंकूं मोक्ष