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२८
· विचारमाला.
वि०२.
क्षोभ जिनतै, त्यक्त वस्तुका पुनः ग्रहण करें नहीं यातें उदार हैं, सूक्ष्म ब्रह्मकं विषय करणेतें सूक्ष्म चित्तवाले हैं। सो श्रुति ने कहा है :- " दृश्यते त्वग्यया बुद्धया सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभिः । अस्यार्थः - सूक्ष्मदर्शयने शास्त्रसंस्कारस हित शुद्ध औ सूक्ष्म बुद्धिकर ब्रह्म देखता है कहिये नि रावरण करीता है" । औ फिर कैसे हैं? जगत के सुष्ठु मित्र हैं काहे ? सर्वप्राणियों में निरर्हेतुक प्रीति करे हैं, औ चिदपु कहिये चेतनही है शरीर जिनोंका औ देह आदिकों में परिच्छिन्न अहंकारतें रहित हैं ॥ ६ ॥
पुनः वही कहै हैं .
दोहा - सर्व मित्र निष्कल्पमन, त्यागी अति संतोष | ऐश्वर्य विज्ञान बल, जानत बंध रु मोष ॥ ७ ॥
टीका :- सर्व मित्र कहिये सर्व प्राणी जिनके मित्र हैं काहे तें सर्व कर आत्मा होने औ कल्पनातें रहित चित्त हैं औ अतित्यागी हैं काहेतें धन दारा आदिकों का