________________
. वि० २.
शिष्यआशंका. कहिये अंतरराग द्वेषरूप मल रहित हैं औ बाह्य जल मृत्तिकादिकोंकर शुद्ध रहे हैं, निष्किंचन कहिये बाह्य संग्रह रहित हैं, गंभीर कहिये अन्यकर अज्ञात आशय हैं. अप्रमत्त कहिये प्रमाद रहित हैं,मत्सर कहिये बसीली (ईषां) तास रहित हैं, मुनि कहिये मननशील, तपःशांत कहिये शांतिरूपही जिनका तप है इहां प्रमाणः- श्लोक.
शान्तेः समं तपो नास्ति संतोषान्न परं • सुखम् ॥तृष्णाया न परो व्याधिन धर्मों
दयया परः ॥१॥ फिर कैसे हैं:-सुधीर कहिये सुष्टु धैर्यवान हैं ।। ३ ।। ____ पुनः वही कहै हैं:दोहा-जित षट्गुन धृति मान कवि, मानद आप अमान ॥ सत्यप्रीतिअनीतगति, करुणाशीलनिधान॥४॥ टीका:-षगुण कहिये षडरमी, तिनोंके धृत क