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विचारमाला.
वि० २००
साक्षीरूपकर जो आत्माका भान सो आत्माका अन्वर्य: ( मालामें सूतकी न्याई अनुवृत्ति) है, आत्मा के मान भये जो स्थूलदेहका अभान सो स्थूल देहका व्यतिरेक ( मणिकेकी न्यांई व्यावृत्ति ) है, औ सुषुप्तिमैं ता अवस्थाके साक्षीरूपताकर आत्माकी प्रतीति सो आ त्माका अन्वय है औ लिंगदेहका अभान सो लिंगदेहका व्यतिरेक है औ समाधिमैं सुखस्वरूपकर जो आत्माका भान सो आत्माका अन्वय है औ अविद्या रूप कारणदेहकी अप्रतीति सो कारणदेहका व्यतिरेक है । यातें त्रिते शरीरों आत्मा भिन्न है | पंचकोश त्रिते शरीरोंके अंतर्गत हैं, यातें कोशोंतें भिन्न विवेचन नहीं किया । इहां प्रमाण:- " त्रिषु धामसु योग्यं भोक्ता भोगश्च यद्भवेत् ।। तेभ्यो विलक्षणः साक्षी चिन्मात्रोऽहं सदाशिवः [१] तीन धामरूप तीन अवस्थाओं में जो भोगके कारण हैं औ भोक्ता है औ भोग है, तिनतें विलक्षण साक्षी चिन्मात्र सदाशिव मैं हूँ " पुनः संत कैसे हैं ? अनीह कहिये व्यर्थ चेष्टास रहित हैं। शुचि
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