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वि०२. . शिष्यआशंका. आदिपद करकै उपरति आदिकोंका ग्रहण करणा, तिनोवाले हैं । ननु शम दम आदि मुक्ति इच्छु मुमुक्षुके लक्षण कहै हैं, विद्वान्के नहीं ? ऐसे मत कहोःकाहेत अकाममति कहिये अंतःकरणमैं हेयउपादेयकी इच्छाते रहित हैं औ मृदुल कहिये कोमल स्वभाव हैं, या सर्व उपकार कहिये शरणागतोंका योगक्षेम करे हैं। योगक्षेम नाम अप्राप्तकी प्राप्ति औ प्राप्तकी रक्षाका है ॥२॥
पुनः संतलक्षण. दोहा-आतमवित जुअनीह शुचि, निकिचन गंभीर ॥ अप्रमत्त मत्सररहित, मुनि तपसांत सुधीर॥३॥ टीका:-आत्मवित कहिये अन्वयव्यतिरेकयुक्तिकर पंचकोश औ त्रिते शरीरोंत भिन्न, त्रिते अवस्थाका प्रकाशक, चिन्मात्र आत्मा, जिनोने जान्या है। सो अन्वय व्यतिरेकरूप युक्ति यह हैः-स्वप्न अवस्थामैं. स्वप्न