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२४ . विचारमाला... वि०२. गुरुदेव ॥ जाहि निरखि हित आपनो, . करौं भलीविध सेव ॥१॥
टीका:-हे श्रीगुरो ! कृपा करके साधुके लक्षण कहो, काहेत? जाहि निरख कहिये जिन लक्षणोंकों माहास्माओंमें देखकर अपने हित कहिये कल्याणके अर्थ भली. प्रकारसैं तिनके सेवादि करूं ॥१॥
(१५) साधुलक्षणवर्णनं श्रीगुरुरुवाच. दोहा-अतिकृपालुनहिद्रोहचित,सहनशीलता सार ॥ शम दम आदि अकाम मति, मृदुल सर्व उपकार ॥२॥
टीकाः-अति कृपालु कहिये प्रयोजन विना कृपा करै हैं, या ही अनोहचित्त कहिये चित्तकर किसीसें देष नहीं करते। पुन कैसे हैं:-सहनशील कहिये मानअपमानादि दंद्रोंके संहारनेवाले हैं, सहनशील स्वभावही सार कहिये श्रेष्ठ है यह जाने हैं औ. शम कहिये मनका निग्रह, दम, कहिये चक्षुरादि इंद्रियोंका निग्रह,