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वि० १. शिष्यआशंका.
- ( १२ ) अब सुगम उपायके जाननेकी इच्छा चित्तमें धारकर अभ्यासमें अपने अनधिकारको प्रकट करता हुआ शिष्य, प्रार्थना करै हैः-शिष्य उवाच. दोहा-हौंविषयी अति अजितमन,नहिन होत अभ्यास ॥ ताते प्रभु तुम पद सरन, हरहु कठिन जग त्रास ॥२५॥
टीकाः-हे प्रभो ! आपने जो अभ्यास बताया सो मेरेसे नहीं होता है! काहेते अभ्यास निर्विषय औ जितचित्त पुरुषसे होवे है, मैं विषयासक्त औ अति अजित चित्त हूं, ताते आपके चरणोंकी शरण हूं, आप सुगम उपाय बतायकर जन्मादि मृत्युपर्यंत जो जगतजन्य दुःखकी स्मृति, तिसतै उत्पन्न भया जो कठिन त्रास कहिये पीनभय, ताके निर्वत्तक हो इत्यर्थः ॥ २५ ॥
(१३) अब शिष्यकी उक्तिका अनुवाद करते हुए गुरु, सुगम उपाय कहै हैं:-श्रीगुरुरुवाचं. दोहा-सुन शिष्य उत्तम सीषको,जोचा