________________
विचारमाला
वि०१.. दोहा-सहज स्वभाव अकासकू, पावक . झरप चलंत ॥ चंचल स्वतः अनादिको, मन रति विषय करंत ॥ २१॥ ..
टीकाः-जैसे साथ उत्पन्न होनेवाले स्वभावसे पावकको झस्प कहिये लाट, अर्चको जावै है। तैसे स्वरूपसे अनादिकालका चंचल जो मन, सो भोग्य अभोग्य जो शब्दादि विषय तिनमें स्वभावसे प्रीति करै है ॥ २१ ॥
(९) अब चंचलताके हेतु जो संदेह, तिनको दिखावै हैं:दोहा-जग सांचो मिथ्या किधों, ग्रहो . तज्यो नहिं जात ॥ ग्रही चचुंदर सर्प : ज्यों, उगलत बनत न खात ॥ २२॥ . :
टीका:-जगत् सत्य है वा मिथ्या है ? मिथ्या है तोभी आपते उत्पन्न होवै है वा किसी अन्यकर ? अन्य भी किसी जीवकृत है वा ईश्वरकृत है ? ईश्वरकृत जो