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१२ विचारमाला.. वि०:१. .
टीका:-दृष्टांतः-जैसे चंद्रके प्रकाशको पाइकर चंद्रकांतमणिही अमृतकों सागै है अन्य नहीं, सो कछू चंद्रमैं विषमता नहीं, काहे चंद्र, समान सबकों प्रकाश करै है, तैसें गुरोंके दर्शन विशाल कहिये ब्रह्मबोध शिष्यकोंही होवे है अन्यको नहीं, सो कछु गुरुमें विषमता नहीं; काहेतें गुरोका दर्शन सर्वको समान है११
(५) ऐसे गुरोंकी शरणकुं प्राप्त होकर शिष्यको क्या करणीय है ? इस आकांक्षाके होयां कहै हैं:शिष्यउवाचःदोहा-हौं सरनागत रावरे, श्रीगुरु दीन- . दयाल ॥ कृपासिंधु वंदूं चरन, हरो क.. ठिन उरसाल॥ १२॥ टीका:-हे श्रीउरो ! सर्व ओरतें निरास हो कर मैं दीन आपकी शरणकुं प्राप्त भया हों, जाते आप दीनदयाल हो औ आपके चरणोंकू वंदन करता हूं! औ: जातें आप कृपासागर हो; याते कठिन कहिये पीन जो . मेरे हृदयमें साल कहिये दुःख है सो हरो॥ १२ ॥