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आत्मवान् स्थितिवर्णन १६७ (९८) अब मुमुक्षुकी प्रवृत्ति अर्थ, तीन दोहोंकर या ग्रंथकी प्रशंसा करे हैं:दोहा-और माल रतनादि जे, घात होत तिन हेत ॥ अद्भुत मालविचार यह तस्कर वश करि लेत ॥ ३४ ॥ षट्दर्शनकी माल जे, अपनो पक्ष लिये जु॥ दैतरहित रुचि माल यह, शोभत सबन हिये जु॥३५॥ राव रंग मन भावती, वरणाश्रम सुख दैन ॥ रुचि विचारमाला रची, चितवत अति चित चैन ॥ ३६॥
टीकाः-योगी जंगम सेवड़े विप्र संन्यासी औ दरवेश ये षट् दर्शन हैं, अन्य स्पष्ट ॥३४॥३५॥३६॥
(९९) अब तत्त्वविचारका महास्य कहे हैं:दोहा-अनाथ श्रवण बहुते किये, कह्यो