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________________ १६८ विचारमाला. वि०.८ बहुत परकार ॥ अब सुविचार विचार पुनि, करण न परै विचार ॥ ३७॥ टीकाः-स्वामी अनाथदासजी कहे हैं:-बहुते ग्रंथोंका श्रवण किया औ बहुत प्रकारसे कथन किया, तथापि कृतकृत्यता न भई; अब सुष्ठु तत्त्वविचार; विचारिक बहुत विचार करना परे नहीं ॥३७॥ . (१०० ) अब अपनी नम्रता सूचन करते हुए ग्रंथकार, दो दोहोंकर कवियोंसे प्रार्थना करे हैं,दोहा-क्षमा करो शिष जानके, हे कवि महाप्रबुद्ध ॥ लेहु सुधार विचारके, अक्षरशुद्ध अशुद्ध ॥३८॥ हौं अनाथ केतिक सुमति, वरणो माल विचार ॥ राम मया सत्गुरु दया, साधुसंग निरधार ॥ ३९॥ टीकाः-अर्थ स्पष्ट ॥ ३८ ॥ ३९ ॥
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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