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________________ वि०८. आत्मवान् स्थितिवर्णन. १,६५ ध्यासन करे औ विसर वाक्य थकि जाय कहिये निदिध्यासनकी परिपाक अवस्थारूप समाधि करे; तब बाजी पाय कहिये जैसे बाजीगर अपनी मायाकर छिपन हो वे है, तैसे गायब कहिये सविलास अज्ञानकर आच्छादित चैतन्यकूं जाने है ॥ ३१ ॥ (९६) दोहा-यह विचार मालहू सरस, बहुविध रच्यो विचार ॥ साधन सिद्ध प्रगट किये, अनाथ भले प्रकार ॥ ३२ ॥ टीका :- यह तत्त्वका विचार, मालाके सदृश मुमुक्षुकरि निरंतर करणीय है । अर्थ यह है: - जैसे जपकर्ता पुरुष निरंतर माला फेरता है, तैसे मुमुक्षुने निरंतर तत्त्वका विचार करणा । याहीते सो विचार नानायुक्तियोंसे कहा है । जो कहो, सो विचार कह्या चाहिये ? तहां सुनोः - साधन कहिये विवेक, वैराग्य, षट्संपत्ति, मुमुक्षुता, श्रवण, मनन, निदिध्यासन, तत्त्वंपदार्थोंका शोधन, औ श्रोत्रसंबंधी महावाक्य अरु सिद्ध कहिये
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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