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वि०८. आत्मवान् स्थितिवर्णन. १५७ दोहा-भगवन आतमवान जे, लीलावत करें भोग ॥ वस्तु बुद्धि कछुना गहैं, धीरजवान अरोग ॥ १९॥
टीकाः हे भगवन् ! जो ज्ञानवान् हैं सो पूर्वले अदृष्टजन्य स्वभावके वशते कर्तृत्व अभिमानते विना भोगोंमें प्रवृत्त होवे हैं औ चिद् जड ग्रंथिके अभावते सत्य बुद्धिकर प्रवृत्त हो नहीं; काहेते धैर्यादि गुण संयुक्त हैं औं अविद्यारूप रोगसे रहित हैं ॥ १९॥
ननु मिथ्या बुद्धिसे ज्ञानवान्की प्रवृत्तिभी अज्ञानीकी प्रवृत्तिकी न्याई बंधनका हेतु है, यह शंका होवे है; ताका उत्तर कहो ? तहां सुनोःदोहा-अज्ञानी आसक्त मति, करे सुबधन हेत॥ ज्ञानीके आसक्ति नहिं,तजै न कछु गहि लेत ॥२०॥
टीका:-अज्ञानी सर्व व्यवहार कर्तृत्व अभिमान___कर करे है, याते ताको बंधनका कारण है औ ज्ञानवा