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विचारमाला. . वि०८. टीकाः-जैसे आदित्यके उदय भये, कोटि दीपकोंका प्रकाश आदित्य प्रकाशके अवांतर व है। तैसे विषयानंदादि समग्र आनंद, विद्धानको ब्रह्मानंदके अवांतर प्रतीत होव हैं, या अभिप्रायते ब्रह्म भिन्न पदाथोंमें इच्छाका अभाव कहा है। बाधित अनुवृत्तिकर पदार्थोकी अप्रतीतिसे नहीं ॥१६॥
ननु परमत निश्चय करने अर्थ, न्यायादि शास्त्रों में विद्वान्की प्रवृत्ति संभव है ? तहां सुनोःदोहा-गरुड़-तहां वाहन सबै, रस सब' . अमी समीप। ज्ञानदिवाकरके उदय,सब मत ढ गये दीप ॥१७॥
टीका:-जाते गरुडका वेग अश्वादि सर्व वाहनोंसे अधिक है, ताते सर्व वाहन गरुडके अवांतर हैं औ चंद्रद्वारा अमृतके अंशकी प्राप्तिते ओषधियोंमें मधुरादि रस होवै हैं, याते सर्व रस अमृतके अंतर्भूत हैं, (आदित्य औ दीपकका दृष्टांत पूर्व खोल्या है) । तैसे