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वि० ८. आत्मवान् स्थितिवर्णन
१५३ पूर्व कही जो विद्वान्की निस्पृहता,तामें हेतु कहे हैं:दोहा-दृष्ट पदारथको भयो, जिनके सह
जअभाव॥ कहा गहै त्यागे कहा, छूटयो 'चाव अचाव ॥ १५॥ • टीका:-जिन महात्माओंकी अधिष्ठानके ज्ञान कर दृश्य पदार्थोंके अभाव निश्चयते ग्रहण त्यागकी इच्छा निवृत्त भयी है, ते विद्वान किसका ग्रहण करें औ कि सका त्याग करें॥१५॥
ननु बाधितानुवृत्तिकर विद्वानको पदार्थोंकी प्रतीति न होवै, तो जीवन उपयोगी भिक्षा अशनादि व्यवहारकी सिद्धि होवै नहीं, बाधित पदार्थोकी प्रतीति स्वीकार होवै, तो प्रतीतिके विषय पदार्थोंमें इच्छा अवश्य होवैगी । ताका अभाव संभव नहीं ? या शंकाके उत्तरकाःदोहा-जैसे दिनगरके उदय,दीपक द्युति दुरि जात ॥ तैसे ब्रह्मानंदमें, आनंद सबै विलात ॥१६॥