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विचारमाला. वि०८, वृत्तिमें निष्ठा होवै है, काहूकी निवृत्तिमें निष्ठा होवे है, याते केवल निवृत्ति कथन ज्ञानवानका संभव नहीं, यह कहै हैं:दोहाः-अनाथ मुज्ञानी कोटिको,निश्चय निजमत एक॥एक अज्ञानीके हिये,वरतत मते अनेक ॥ १०॥
टीका:-अनंत ज्ञानियोंका स्वरूपमें निष्ठारूप मत निश्चयकर एकही है, अरु जो कहो निष्ठारूप मत कौन है? तहां सुनोः-श्लोक "किं करोमि क गच्छामि किं गृह्णामि त्यजामि किम् ।। आत्मना पूरितं सर्वमहाकल्पांबुना यथा" "जैसे महाकल्पमें जलकर सर्व स्थान पूर्ण होवे हैं, तैसे मेरे आत्माकर सर्व पूर्ण हैं; ताते मैं क्या करों, कहां जावों, क्या ग्रहण करों, औ किसका त्याग करों " । सर्व विद्वानोका यही निश्चय है औ एक अज्ञानीके हृदयमें अनेक निश्चय होवै हैं सो कहे जावें नहीं, काहेते वसिष्ठजीने रामचंद्रके प्रति कहा है:-“हे राम ! मुझसे आदि लेके सर्व ज्ञानवानोंका