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________________ ... विचारमाला.... वि.८ मोक्षका साधन होनेते मोक्षही है औ. विषयोंमें जो स्नेह है सो बंधका हेतु होनेते बंधन है। सो कहा है ग्रंथांतर:- "बद्धों हि को यो विषयानुरागी को वा विमुक्तो विषये 'विरक्तः " "विषयोंमें अनुराग बंध : है औ विषयोंमें वैराग्य मोक्ष हैं." औ“रागो लिंगमबोधस्य चित्तव्यायामभूमिषु ":" चित्तके विचरनेकीयां भूमियां जो शब्दादिक विषय, तिनमें जो राग है सो अज्ञानका चिह्न है"। यातेभी ज्ञानवानकी प्रवृत्तिका ' अभावही निश्चय होवै है। सर्व ग्रंथोंका या अर्थमेंही. तात्पर्य है, इनमें से जामें तेरी रुचि होवै सो कर । यद्यपि पूर्वोक्त सर्व ग्रंथ, ज्ञानके मुख्य साधन वैराग्यकी प्रधानताके कहनेते मुमुक्षुपर हैं औ शिष्य अद्वैतनिष्ठाकू प्राप्त भया है, याते ताप्रति यह कथन संभव नहीं; तथापि वादी भद्रं न पश्यति' वादी पुरुष कल्याणको नहीं देखे हैं । या न्यायकर गुरुने शिष्यके सिद्धांतमें आशंका करी है, याते यह कथन संभवै है ॥ ७॥ . अब गुरुकी दयालताको प्रकट करते हुए ग्रंथकार कह हैं:- . . . . . . . . . ....
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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