________________
१४२
विचारमाला. वि एकवार महावाक्यके श्रवणकर उदय भये तत्त्वज्ञानसे संशयादिरूप प्रतिबंधक सद्भावत आनंदाविर्भावरूप कार्यकी सिद्धि होवै नहीं । यातॆ तामें संदेह संभवे है:___ अब परीक्षाका प्रकार कहे हैं:दोहा-परीक्षा निज विज्ञानकी, लेत खंड व्यवहार ॥ इस्थिति आतमवानकी, उपदेशत निरधार ॥२॥
टीकाः-विद्वानकी प्रवृत्तिरूप व्यवहारके निषेधद्वारा गुरु शिष्यके ज्ञानकी परीक्षा करे हैं:-काहेते भिक्षा भोजन ।
औ कौपीन आच्छादनके ग्रहणते अधिक प्रवृत्ति विद्धानकी भोग्योंमें होवै नहीं; यह पक्ष बहुत ग्रंथोंमें लिख्या है। या पक्षको आश्रय करके गुरु, ज्ञानवान्की उदासी.. नतारूप स्थितिको अज्ञ औ मुमुक्षु औ बद्ध ज्ञानीते भिन्नकर उपदेश करें हैं ॥२॥ (८५) श्रीगुरु, वक्ष्यमाण वचन कहे हैं:
श्रीररुरुवाच। . 'दोहा-जो कहि करहिं कहा विषय, म- .