SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रि० ८० आत्मवान् स्थितिवर्णन. अथ आत्मवान् स्थितिवर्णनं नाम अष्टमविश्रामप्रारंभः ॥ ८ ॥ . [ ८४ ] अब अष्टम विश्राम में कथन करना जो अर्थ, ताकी सूचक ग्रंथकार की उक्ति आदिमे लिखे हैं:दोहा - अनुभव अमृत शिष्यके, उदय भयो चित चैन ॥ लैन परीक्षाको कहै गुरु करुणारस बैन ॥ १ ॥ १४१ टीका :- अद्वितीय निश्चयरूप अमृतके उदय भ येसे शिष्य के हृदयमें आनंदका आविर्भाव भया है वा नहीं, या संदेहकी निवृत्तिरूप परीक्षाके अर्थ गुरु, करुणारससे मिले वक्ष्यमाण वचन कहे हैं । ननु महावाक्यरूप प्रमाणजन्य ज्ञानके उदय भये आनंदका आविर्भाव अवश्य होवै है, तामें संदेह संभव नहीं ? तहां सुनोः - जैसे नवीन कंटकका आकार यथावत् प्रतीतभी हो है, तोभी कोमलतारूप प्रतिबंधके सहावतै ता कंटक से वेधनादिरूप कार्य होवे नहीं । तैसे
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy