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त्रि० ८०
आत्मवान् स्थितिवर्णन.
अथ आत्मवान् स्थितिवर्णनं नाम अष्टमविश्रामप्रारंभः ॥ ८ ॥ .
[ ८४ ] अब अष्टम विश्राम में कथन करना जो अर्थ, ताकी सूचक ग्रंथकार की उक्ति आदिमे लिखे हैं:दोहा - अनुभव अमृत शिष्यके, उदय भयो चित चैन ॥ लैन परीक्षाको कहै गुरु करुणारस बैन ॥ १ ॥
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टीका :- अद्वितीय निश्चयरूप अमृतके उदय भ येसे शिष्य के हृदयमें आनंदका आविर्भाव भया है वा नहीं, या संदेहकी निवृत्तिरूप परीक्षाके अर्थ गुरु, करुणारससे मिले वक्ष्यमाण वचन कहे हैं । ननु महावाक्यरूप प्रमाणजन्य ज्ञानके उदय भये आनंदका आविर्भाव अवश्य होवै है, तामें संदेह संभव नहीं ? तहां सुनोः - जैसे नवीन कंटकका आकार यथावत् प्रतीतभी हो है, तोभी कोमलतारूप प्रतिबंधके सहावतै ता कंटक से वेधनादिरूप कार्य होवे नहीं । तैसे