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१४० विचारमाला. वि०.७. स्थूल सूक्ष्म कारण शरीर वस्तु, औ सत्वादि तीन रणभी मुझमें नहीं । वाद करनेवाला औ वितंडा जल्प अध्यात्मादि वाद औ ताकर होवै जो जय पराजय, सोभी नहीं ॥ १८ ॥ १९॥ २० ॥ (८३) दोहा-कह्यो शिष्य अनुभव सबै, रह्यो मौन गहि सोय॥ बोले दास अनाथ कहि, मुगुरु शिष्य तनजोय ॥२१॥
टीका:- स्वामी अनाथदासजी कहे हैं:-शिष्य गुरुद्वारा अनुभव करे समग्र अर्थको कहकर सो मौनको अंगीकार कर स्थित भया । तब गुरु, शिष्यकी ओर देखकर शिष्यकी परीक्षा अर्थ, वक्ष्यमाण रीतिसे बोलते भये ॥२१॥ दोहा-स्वतः शिष्य अनुभव भयो, इति अष्टम प्रति आख ॥ गुरु यामें शंकाकरे, उत्तर तिन प्रति भाष ॥२२॥ इति श्रीविचार शिष्यअनुभववर्णनं नाम सप्तमो विश्रामः समाप्तः ॥७॥