SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ विचारमाला. वि० १. यातें श्रीयुतपदका सतही अर्थ है । औ सुरारि कहिये मुरनाम दैत्यके हंता जो सगुणब्रह्म, ताके चरणोंकूं नमस्कार करके | यद्यपि मुरारि संज्ञा वैकुंठवासी चतुर्भुज मू र्तिकी है तथापि सो मूर्ति सगुण ब्रह्म ही धारण करी है। जो जिज्ञासु या ग्रंथकूं हृदयमें धारण करे सो मौनी है वा इस पदका और अर्थ करनाः - मौनी जो हमारे गुरु हैं तिनका हृदय में स्मरण करके ॥ ३ ॥ ( ३ ) किं मौन ? इस प्रश्नका अभिप्राय यह है :मौन चार प्रकारका है, बाणीका मौन [१] औ इंद्रियोंका [२] औ मानस [३] चतुर्थ ज्ञानमौन है [४] तिनमें कौन मौन तुमारे गुरोंने अंगीकार किया है तहां तुरीयपक्ष मानकर कहै हैं:दोहा - यह मैं मम यह नाहिं मम, सब विकल्प भै छीन । परमातम पूरन सकल, जानि मौनता लीन ॥ ४ ॥ टीका:--सकल कहिये अन्नमयादि पंचकोशनतें परे जा आत्मा ताकूं. पूरण कहिये ब्रह्मरूप जानकर. यह क
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy