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___ १३८ विचारमाला.. वि०७.
दोहा-जाग्रत स्वप्न सुषुप्तिके, अभिमानी जे आहिं॥जो सबको अनुभव करै,शिवस्वरूप कहि ताहि ॥ १६॥ . ...
टीकाः ननु पूर्व साक्षीका निषेध किया सो बनै नहीं, काहेते जाग्रतका अभिमानी विश्व, स्वप्नका अभिमानी तैजस, सुषुप्तिका अभिमानी प्राज्ञ, आग्रतादि अवस्थाके सहित सर्वको जो प्रकाशे ताको शास्त्रोंमें शिवस्वरूप कहा है; याते ताका निषेध बने नहीं ॥ १६ ॥
(८२) अब वक्ष्यमाण दोहेवला को शंकाका समा- धान करे हैं- नहीं । यद्यपि ,
दोहा-साधन साध्य कछु भद ब्रह्मम बन र हु नहि कोय ॥ प्रमाण प्रमोती को कहै, अनाथ प्रमेय न होय ॥१७॥ टीकाः-जाकर साध्यकी सिद्धि होइ सो साधन औ साधनकर सिद्ध होयचे योग्य साध्य औ साधनकर साध्यकी प्राप्तिवाला सिद्ध औ प्रमाण प्रमाता प्रमेयरूप