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________________ वि०:७० शिष्यअनुभववर्णन. १३७ ? दोहा - एकह कहत बने नहीं, दोइ कहाँ किहि भाय ॥ पूरणरूप विहायसी, घट बढ़ कह्यो न जाय ॥ १४ ॥ • टीका :- एकत्व संख्यावाचक एकशब्दकीही नाम जाति गुण क्रियाके अभावतें ब्रह्ममें प्रवृत्ति बनै नहीं, तो द्वित्वसंख्यावाचक दो शब्दकी प्रवृत्ति कैसे बने ? काहे गुण क्रिया आदिकही शब्द प्रवृत्तिके निमित्त हैं, सो बमैं नहीं, याते जैसे होवे तैसे पूर्णरूपको त्यागकर अ धिक न्यून भाव ब्रह्ममें कह्या जावै नहीं ॥ १४ ॥ अब त्रिते शरीर औ अवस्थाके अभिमानी विश्वा दिकों का आत्मामें निषेध करे हैं: दोहा - विश्व न तैजस प्राज्ञ कछु नहि तुरिया तामाहिं ॥ स्वस्वरूप निजज्ञानघन, मैं तू विव तहँ नाहिं ॥ १५ ॥ 'टीका:- तुरीय नाम साक्षीका है । अन्य स्पष्ट १५ (८१) अब उक्त अर्थ में शंकाको कहे हैं: C
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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