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विचारमाला.
वि०.७. आत्मामें, कार्यकारणभाव नहीं, काहेते मृत्तिकादिकोंकी न्याई कारण सावयवही, होवे है, मैं निखयव हूं, याते कारण नहीं. औ घटादिकोंकी न्याई जो कार्य होवै सो अनित्य होवै है, मैं नित्य हूं याते कार्य नहीं. तथा सजातीय विजातीय स्वगत भेद ब्रह्मरूप आत्मामें नहीं, काहेते जैसे पटका पटमें भेद सो सजातिकृत भेद है, तैसे ब्रह्मके सदृश अन्य ब्रह्म होवै, तब सजातिकृत भेद ब्रह्ममें होवै, ब्रह्मके सदृश अन्य ब्रह्म नहीं, यात ब्रह्ममें सजातिकृत भेद नहीं। जैसे पटमें घटका भेद है सो विजातिकृत भेद है, तैसे ब्रह्मके सामान सत्तावाला कोऊ विजाति नहीं, याते ब्रह्ममें विजातिकृत भेद नहीं । यद्यपि जीव ईश्वर, ब्रह्मसे विजाति हैं; तिनोंका भेद ब्रह्ममें बने है, तथापि जीव ईश्वर मायिक होनेते मिथ्या है, यात तिनोंका भेद ब्रह्ममें नहीं। यह पंचदशीमें कहा है । औ जैसे पटमें तंतुका भेद है सो स्वगत भेद है । तैसे ब्रह्म सवियव नहीं, याते ब्रह्ममें स्वगत भेद नहीं ॥ १३॥
(८०) ननु ता अधिष्ठानका स्वरूप कहा चाहिये ? तहाँ सुनो-
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