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________________ वि० ६. जगन्मिथ्यावर्णन. १२३ अनिर्वचनीय कारणता के संभवते ईश्वरका अंगीकार बी संभव है ॥ १३ ॥ दोहा - आन भिन्न नहिं तोयते, बुदबुद फेन तरंग ॥ याप्रकार संसार यह, शुद्ध स्वरूप अभंग ॥ १४ ॥ टीका :- बुदबुदे फेन लहरी यह जलते भिन्न सत्य नहीं, तैसे यह संसार भी शुद्धस्वरूप अधिष्ठान आत्माते भिन्नसत्तावाला नहीं; काहेते अध्यस्तकी सत्ता अधिष्ठानते भिन्न होवै नहीं, यह नियम है ॥ १४ ॥ (७४) ननु अधिष्ठानते अध्यस्तकी भिन्न सत्ता न होवै तो, देहादि अध्यस्त पदार्थों में गमनागमनादि व्यवहार न हुआ चाहिये ? यह आशंका कर कहे हैं:दोहा - पूरण आतममे जगत, कंचन मुहर प्रकार || अद्वय अमल अनूप अज, मुद्रा, नाम असार ॥ १५ ॥ टीका :- यद्यपि पूर्णात्मासे जगत अनन्यरूप भी 1
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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