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वि० ६. जगन्मिथ्यावर्णन. रज्जुका विशेष धर्म रज्जुत्व भासे नहीं औ रज्जुमें जो मुंजरूप अवयव हैं सो भासे नहीं, किंतु रज्जुमें सामान्यधर्म इदंता भासे है । तैसे शुक्तिमें शुक्तित्व औ नीलपृष्ठता त्रिकोणता भासे नहीं, किंतु सामान्य धर्म इदंता भासे है; याते नेत्रद्वारा अंतःकरण रज्जुको प्राप्त होइके इदमाकार परिणामको प्राप्त होवै है; ता इदमाकार वृत्ति उपहित चेतननिष्ठ अविद्याके सर्पाकार औ ज्ञानाकार दो परिणाम होवे हैं । तैसे दंडसंस्कारसहित । पुरुषके दोषसहित नेत्रका रज्जुके संबंधसे जहां वृत्ति होवै तहां दंड औ ताका ज्ञान अविद्याके परिणाम होवे हैं। मालासंस्कारसहित पुरुषके सदोष नेत्रका रज्जुसे संबंध होइके इदमाकार वृत्ति होवे, ताकी वृत्ति उपहित चेतनमें स्थित अविद्याका माला औ ताका ज्ञान परिणाम होते है। जहां एकरज्जुसे तीन पुरुषनके सदोष नेत्रनका संबंध होईकै सर्प दंड माला एक एकका तिन्हको भ्रम होवै तहां जाकी वृत्ति उपहितमें जो विषय उपज्या है सो ताहीको प्रतीत होवै है अन्य