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विचारमाला.
वि. १
अर्धकूपकी न्यांई दुःखदाई है । ब्रह्मज्ञानतें अविद्या तत्कार्यरूप अनर्थकी निवृत्ति कही, सो परमानंदकी प्राप्तिसें विना नै नहीं, याते परमानंदकी प्राप्ति अवश्य होवै है; सो ग्रंथका प्रयोजन है ॥ १ ॥ पूर्व कहे अर्थमे शंकापूर्वक उत्तर
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दोहा - राम मया सतगुरुदया, साधुसँग जब होय ॥ तब प्रानी जाने कछू, रह्यो विपयरस भोय ॥ २ ॥
टीका:-वादी शंका करे है:- कछू कहिये तुच्छ जो विषयसुख,तामे रह्यो भोय कहिये आसक्त हुआ जो जीव, सो ब्रह्मकूं कैसे जाने है ? उत्तरः- साधु कहिये आगे कहने हैं लक्षण जिनके संग कहिये तिनमें निष्काम प्रीति । राममया कहिये ईश्वरके ध्यानकर जो चित्तकी एकाग्रता औ सतगुरु कहिये यथार्थगुरू, अर्थात् ब्रह्मश्रोत्री ब्रह्मनिष्ठ, तिनकी दया कहिये शिष्यकं तत्त्व'साक्षात्कार होवे इस संकल्पपूर्वक जो महावाक्यका उप
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