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वि० ६.
जगन्मिथ्यावर्णन.
संपूर्ण श्रुति स्मृति वचन जगतका सद्भाव कहे हैं। पुनः प्रत्यक्षादि प्रमाणोंकरभी जगत प्रतीत होवै है, आप जगत्कं अत्यंत असत्य किस रीतिसे कहो हो । जो जगत् अत्यंत असत्य होवै तो उत्पत्ति प्रतिपादक 'यतो वा इमानि भूतानि जायते, तस्मादा एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः' इत्यादि वाक्य हैं, वे विषयके आभावते व्यर्थ होवेंगे जाते निश्चय करके ये भूत उत्पन्न होवे हैं,
ब्राह्मणप्रतिपाद्य वा मंत्रप्रतिपाद्य आत्माते आकाश उत्पन्न होते है, ' यह तिनका अर्थ है । प्राप्त सत वस्तुका निषेध होवे है, जगत अत्यंत असत होवे तो निषेधप्रतिपादक 'तरति शोकमात्मवित् ' इत्यादि वाक्य भी व्यर्थ होवेंगे औ कार्यके अभावते कारणरूप ईश्वरका अंगीकारभी निष्फल होवैगा; इत्यादि अनेक शंका मेरे ताई होवै हैं सो आप निवृत्त करो ॥ १० ॥
(७३) जगतका अत्यंताभावरूप जो उत्तम सिद्धांत . ताको हृदयमें धरके गुरु, जगतका अनिर्वचनीयत्व दिखावते हुए शिष्यकी शंकाका समाधान करे हैं दोदोहोकरः-श्रीररुरुवाच ।