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जगन्मिथ्यावर्णन,
अथ जगन्मिथ्यावर्णनं नाम षष्ठविश्रामप्रारंभः ।
( ७० ) अब षष्ठे विश्राम में जगत्का अत्यंताभाव दिखायबे अर्थ, प्रथम शिष्यका प्रश्न लिखे हैं:शिष्य उवाच. दोहा - भो भगवन् मोमन भयो, संशय देह निवार | जग मिथ्या किहि विध कह्या, मोप्रति कहो विचार ॥ १ ॥
वि० ६.
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टीका:- हे भगवन् ! पूर्व आपने जगतकं मिथ्या जिस रीति से कहा है, यह अर्थ मेरी बुद्धिमें आरूढ भया नहीं यातें मेरे चित्तमें संदेह है ताकी निवृत्ति अर्थ आप पुनः सो विचार कहो जाते संदेह दूर होवै ॥ १ ॥
( ७१ ) अब शिष्य के संदेह दूर करणे अर्थ, विदानको दृष्टिमें अविद्या तत्कार्यरूप जगत अत्यंत असत्य है यह कहै हैं, काहेते यह शास्त्र में कहा