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- विचारमाला.
वि०. ५०.
टीका:- पूर्वोक्त विवर्तरूप जगत, सत्य कहे तो बनै नहीं, काते तीन कालमें जाका बाध न होवे सो सत्य कहिये है । प्रपंचका अधिष्ठानं ज्ञानते बाघ निश्वय होवे है, याते मिथ्या कहना संभव है । मिथ्या कोही अनिर्वचनीय कहे हैं । जो किसी वचनका विषय न होवे ताको अनिर्वचनीय नहीं कहे हैं, किंतु सत्य असत्यते विलक्षणका नाम अनिर्वचनीय है । रूपवान् औ प्रातीतिक सत्ताका आश्रय सत्य विलक्षण शब्दका अर्थ है औ असविलक्षण कहिये बाधके योग्य ऐसा घटादि सर्व प्रपंच है। जो कहो अधिष्ठानका स्वरूपभी का चाहिये तहां सुनोः - सो आश्वर्यरूप है, काहेते सर्व प्रकाशता हुआ भी आप किसीका विषय होवे नहीं याते वाणीकर कह्या जावै नहीं ॥ २१ ॥
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सोरठा - भयो सु पंचम शांत, जगदात्मक एकत्व कहि ॥ पढे होड छत भ्रांत जगदात्मा चिद एक लहि ॥ २२ ॥ इति विचारमालायां जगदात्मवर्णनं नाम पंचमविश्रामः समाप्तः ॥ ५ ॥