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विचारमाला. वि० ५. कंचनमें प्रतीत होवै है, तैसे ब्रह्ममें नानात्वकी प्रतीति मायारूपं उपाधिके संबंधसे होवै है ।। १५॥ ..
(६९) ननु यह कहने में परिणामवाद प्रतीत होवै है, काहेते पूर्वरूपकू त्यागके रूपांतरकी प्राप्तिा परिणाम कहे हैं । जैसे शीतरूप उपाधिके संबंधसे । दुग्धरूपताकू त्यागिके दुग्ध दधिरूप- होवे है। तैसे ब्रह्मभी मायारूप उपाधिके संबंधतें ब्रह्मभावळू त्यागिके जगतरूप परिणामको प्राप्त होवै,तो दुग्धादिकोंकी न्याई विकारी हुआ चाहिये? यह शंका सिद्धांतके अज्ञानते होवै है, काहेते सिद्धातमें विवर्तवाद अंगीकार किया है। पूर्वरूपकुं न त्यागके रूपांतरकी प्राप्तिकू विवर्त कहे हैं। ब्रह्म, अपने सत्यादि लक्षणरूप स्वरूपकून त्यागके आकार शादि जगत्स्वरूपसे प्रतीत होवै है, या अर्थके साधक दृष्टांतोंकू पंच दोहोंकर कहे हैं:- . . . दोहा-मृदविकार मृदमय सकल, हिम. .. विकार हिम जान ॥ तंतु विकार सु तंतु .. ही, यो आतम जग जान ॥ १६॥देखि