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जगदात्मवर्णन.
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न्याई विनाशी कहा है । जो कहो ब्रह्मकूं सर्वरूप होनेते ब्रह्मादि देवभी ब्रह्मरूपही हैं, याते देवनकी उपासनाका निषेध वने नहीं; तथापि अविद्या तत्कार्यकी निवृत्ति औ आनंदावाप्तिरूप मोक्ष. शुद्धब्रह्मके ज्ञानतेही होवे हैं, यह पंचदशी में लिख्या है । तामें दृष्टांत कला है: - जैसे पुरुषको वृक्षके मूलमें जलका न सिंचन करके, शाखा औ पत्तों में जल सिंचनते फलकी प्राप्ति होवे नहीं ॥ १४ ॥
( ६८ ) ननु देवादिरूप जगत् ब्रह्ममें स्वाभा - विक प्रतीत होवे है, वा नैमित्तिक है, स्वाभाविक कहो तो, निवृत्त न हुआ चाहिये औ निवृत्त होवे है, याते नैमित्तिक है, यह कहो सो निमित्त कौन है, यह कह्या चाहिये ? तहां सुनो:दोहा - जैसे
सांचे में पयो, होत कनक बहुअंग ॥ नानावत यों ब्रह्ममें, लै उपाधिको संग ॥
१५ ॥ टीका:--जैसे सूपेके संबंधसे कटकादिरूप नानात्व