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________________ ११० विचारमाला. टीका---गजस्थादिरूप खिलौन्योंकू देखकर बिना विचारसे पुरुषके चित्तमें आनंद होवै है, पुनः ए खांड- . ही है ऐसा विचार कियेसे खांडमें लय हुए खिलौने आनंदके जनक होवें नहीं; तैसे विचार विना देहादि । पदार्थ आनंदकर होवै हैं विचारकर आत्मवस्तुरूप अधिठानकू जब जान्या तब अध्यस्त पदार्थ सर्व अधिष्ठानमें .. लय हुए आनंदके जनक हो नहीं ॥ १३ ॥ ( ६७ ) अब अधिष्ठानज्ञानशून्य पुरुषोंकी निंदा करे हैं:दोहा-लयो न शुद्ध स्वरूप जिन,कहा लह्यो तिन कर॥शाखा दलसींचत रह्यौं, जो नहिं सीच्यो मूर ॥ १४॥ . टीका:-जिन पुरुषोंने निरावरण ब्रह्मरूप अधिष्ठानळून जानके यज्ञादि काँमें वा ब्रह्मभिन्न देवनकी उपासनामें निश्चय किया, तोतिन पुरुषोंने क्या.निश्चय । किया ! जाते कर्मउपासनाका फल कृषि आदिकोंकी ..
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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