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वि० ५. जगदात्मवर्णन १०९ थ्या संबंधसे प्रतीत होते, परंतु तामें आभास तो सत्य है? तहां सुनोःदोहा-वसनपुतरी बसनमय,नानाअंगअनूप॥ एक तंतु विन नहिं बियो, त्यों सब शुद्ध स्वरूप ॥ १२॥
टीका:-नाना करचरणादि अंगोंसहित वस्त्ररूप मूर्ति औ ताके शरीरपर श्वेत पीतरूप वस्त्र हैं, सो दोनों तंतुमें कल्पित हैं, काहेते विचार किये तंतुसे भिन्न प्रतीत होवें नहीं, तैसे सब कहिये त्रिते शरीर
औ आभास, कल्पित होनेते शुद्ध स्वरूप आत्मासे अतिरिक्त नहीं ॥ १२॥
ननु-ऐसे है तो पदोंसे हर्ष शोक क्यू होवै है ? ए शंकाकर विचार विना होवै है, यह कहे हैं:दोहा-देखि खिलौने खांडके,आनंदभयो मनमांहि ॥चाह करी जब वस्तुकी,तब सबलय हुइ जांहि ॥१३॥