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विचारमाला. वि० ५. जाते यह जड है औ तू चैतन्य है; याते सोदृश्यक अभावते पुनः इनमें आत्मप्रतीति होवै नहीं। जो कहो . आत्मा चैतन्य है यामें क्या प्रमाण है ? तहां सुनोः“य एष हृद्युतज्योतिः पुरुषः " यह श्रुति प्रमाण है यह सर्वके अपरोक्ष हृदयके अंतर पुरुष प्रकाशरूप है' १० .(६५) ननु अनात्मामें आत्मप्रतीति ज्ञानवानकू मत होवै, परंतु आत्मामें त्रिते शरीररूप अनात्मा कौन संबंधकर प्रतीत होवै है यह कहो ? तहां सुनोः- . दोहा-एक तंतुमे त्रिगुणता,उरझि ग्रंथि बहुभाय॥ ऐसे शुद्ध स्वरूप में, अनाथ : जगत दरसाय ॥११॥
टीका:-जैसे एक तंतूमें प्रथम तीन तागे बनायके पुनः तिनकू उरझायके ग्रंथि कहिये मणके बनावै हैं, सो मणके जैसे ना तंतुमें कल्पित संबंधसे प्रतीत होवे हैं, तैसे शुद्धदात्मामें त्रिते शरीररूप जगत कल्पित तादात्म्य संबंधसे प्रतीत होव है ॥ ११ ॥ · .. (६६) ननु लिंगशरीरादिरूप उपाधि तो मि