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वि० ५. जगदात्मवर्णन. १०७
टीकाः-शब्दादि पंचविषयरूप भोग्य है औ तिनके भोगनेका स्थान स्थूल शरीर है औ भोक्ताके प्रति तिन भोगोंके निवेदन करनेवाले चक्षुरादि इंद्रिय हैं औ मन बुद्धि उपलक्षित लिंगशरीररूप भोक्ता है, तू इन साँका प्रकाशक चिदात्मा इनते भिन्न है, याते भोक्ता नहीं ॥९॥
औ जो कहो बाधित अनुवृत्तिकर प्रतीयमान जो आत्मसंबंधी स्थूल सूक्ष्म शरीर, तिनमें पुनः आत्मप्रतीति होवैगी ? यह आशंका कर, आत्मा अनात्माके सादृश्यके अभावते होवै नहीं, यह कहे हैं:दोहाः-कारण लिंग स्थूल तन,मन बुधि इंद्रिय प्राण ॥ ए जड़ तोहिं लहैं नही,तू चैतन्य प्रमाण ॥१०॥
टीका:-अनिर्वचनीय अनादि अविद्यारूप कारण शरीर औ दश इंद्रिय औ पंच प्राण औ मन अरु बुद्धि ए सप्तदश अवयवरूप लिंगशरीर औ अन्नमयकोशरूप स्थूलशरीर ये तीनो शरीर तेरा सादृश्यकू पावे नहीं ।