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विचारमाला.
वि० ५. टीका:-जैसे निद्रा समय स्वप्न जगत कहूं सुखदायी प्रतीत होवे है,कहूं दुःखप्रद प्रतीत होवे है,परंतु जब पुरुष जाग्या तव स्वप्न जगतकी स्मृति कर जाग्रत् बोधकी हानि होवै नहीं; तैसे अज्ञानरचित दृष्टादृष्टि दृश्यरूप जगत तत्त्वज्ञानके हुए प्रतीतभी होवे है. तोगी ताकर ज्ञानका बाध होव नहीं। यह पंचदशीमें लिख्या है.-"बोधकर मारे हुए अज्ञान तत्कार्यरूप शव, स्थितभी हैं तथापि बोधरूप चक्रवर्ती राजाकू तिनोंते भय नहीं; प्रत्युत तिस कर्ताकी कीर्ति होवे है॥ ५॥
(६४) अरु जो कहो, पूर्व रीतिसे बोधकी हानि काहेते नहीं होवै है ? तहां सुनोःदोहा-क्षुधा पिपासा शोक पुन, हरष जन्म अरु अंत ॥ये पट उर्मी धर्म तन, आत्मा रहित अनंत ॥६॥
टीका:-ये षट् उर्मी स्थूल सूक्ष्म शरीरका धर्म हैं। क्षुधा पिपासा प्राणके धर्म है, शोक हर्ष मनके धर्म हैं, जन्म मृत्यु स्थूलशरीरके धर्म हैं, औ अनंतात्मा