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इ० ५, .. जगदात्मवर्णनं.
अथ जगदात्मवादनाम · पंचमविश्रामप्रारंभ ।
(६२) शिष्य उवाच । दोहा-साधनं ज्ञान लयो भलै, भगवन तुम प्रसाद ॥किह प्रकारआत्मा जगत, मोमन अधिक विषाद॥१॥
टीका:-अर्थ स्पष्टभाव यह है' हे भगवन आस्मामें जगत सत्य है अथवा असत्य है, सत्य कहो तो ब्रह्मज्ञानसे ताकी निवृत्ति नहीं चाहिये औ असत्य कहो तो प्रतीत हुआ नहीं चाहिये ? इस आकांक्षाके भयां; द्वितीयपक्षकू अंगीकार कर कहे हैं ।। १ ।।
(६३) श्रीगुरुरुवाच । दोहा-अहो पुत्र कीजै नहीं, रंचक ऐसो भर्म॥कहां जगत ईश्वर कहां, यह सब मनके धर्म ॥२॥ टीकाः-हे शिष्य ! आत्मामें जगत सत्य है ऐसा