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वि० ५, :
विचारमाला. बांधके समुद्रके जल मापणे अर्थ फेंके, सो जलरूप हो ई पुनः जलसे बाहीर नहीं आवैहै; तैसे या ग्रंथके अभ्यास कीयेतै ज्ञानद्वारा ब्रह्मकुं प्राप्त होईके पुनः जीवभावकू प्राप्त नहीं होते है । यह गीतामें कहा है: 'यद्गत्वा न निवर्तते ।' जिस ब्रह्ममें प्राप्त होके पुनः नहीं निवृत्त होवै हैं, । यद्यपि मूलमें दाात नहीं, तथापि दृष्टांत के बलते ताकी कल्पना करी है ॥ ३५ ॥ दोहा-अलं तुरिय विश्राम यह, साधन ज्ञान अलाप ॥ पढ़े याहि अनयासही, लखे ब्रह्म चिद आप॥३६॥ इति श्रीविचारमालायां ज्ञानसाधनवर्णनं नाम
चतुर्थविश्रामः समाप्तः ॥ ४॥ .