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विचारमाला. वि०४. नहीं । यद्यपि अहं सुखी अहं दुःखी यह अहंकार विद्धानमें भी प्रतीत होवै है? तथापि अहंशब्दके तीन अर्थ हैं:एकमुख्य अर्थ औदो अमुख्य हैं। पदकी शक्तिवृत्तिकर जो प्रतीत होवै सो मुख्य अर्थ कहिये है औ लक्षणा कर प्रतीत होवै सो अमुख्य कहिये है । तथाहिः-आभास सहित कूटस्थ अहंशब्दका मुख्य अर्थ है, या अर्थमें अहंशब्दकू मूढ पुरुष जोड़ते हैं औ अंतःकरणसहित आभास अरु कूटस्थ ये दोनों भिन्न भिन्न अहंशब्दके अमुख्यार्थ हैं। इनमें लौकिक शास्त्रीय व्यवहारमें अहंशब्दकों) विवान क्रमकर जोड़ते हैं । “अहं गच्छामि अहं तिठामि अहं सुखी अहं दुःखी " या लौकिक व्यवहारमें अहंशब्दकू विद्वान् साभास अंतःकरणमें जोड़ता है। " असंगोऽहं चिदात्माऽहं " या शास्त्रीय व्यवहारमें अहंशब्दकू विद्धान कूटस्थात्मामें जोड़ता है । यद्यपि साभास अंतःकरण अध्यस्त है, सो सुख दुःखका आश्रय बने नहीं, काहेते जो अध्यस्त होवै सो अन्यका आश्रय होव नहीं यह नियम है। जैसे रज्जुमें अध्यस्त