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ज्ञानसाधना
टीकाः-व्यवधानरहित ब्रह्माकार वृत्तिरूप समताके उदय भयां जो फल होवै सो कहे हैं: जौनसीयां कामक्रोधरूप वृत्तियां पुरुषके हृदयमें पूर्व निरंतर होतीयां थीयां सो निदिध्यासनके कीये कदाचित होवै हैं । दृष्टांतः-जैसे रात्रिके आगमनसे पुरुषोंका गमनागमनरूप संचार स्वल्प होवै है तैसे ॥ ३३ ॥
(६०) अब संशय विपर्ययसे रहित तत्त्वज्ञानके उदय भये कर्तव्यका अभाव कहे हैं:दोहाः-शनैः शनैः साक्षातता, उदय भई
जव जाहि ॥ है नाहीं शुभ अशुभ सुख, .. ' दुख नहीं दरसै ताहि ॥३४॥ टीका:-श्रवण मनन निदिध्यासनके करते हुए जब जिस महात्माकू तत्त्वज्ञान उदय भया, तब ताकू . विधि निषेध नहीं है । सोई कहा है:-"निबैगुण्यमामें जो विचरता है, ताको को विधि है को निषेध है" औ ताकू सुख दुःखभी अपने आत्मामें प्रतीत होवै