SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानसाधन. वि० ४. भिन्न निमित्तोपादान. कहै तोभी प्राणिकर्मनिरपेक्ष कत्र्ता होनेते विषमकारिता आदिक दोषवाला है अथवा प्राणिकर्म सापेक्ष कर्ता होनेते विषमकारिता आदिक दोषरहित है; इसते आदि अनेक प्रकारके तत्पदार्थगोचर संशय हैं । सो सकल संशय प्रमेयसंशय कहिये हैं। तिनकी निवृत्ति मननसे होवै है॥३०॥ अब पूर्व कहे फलकू पुनः स्पष्ट कर हैं:दोहा-नितप्रति करत विचारकै, स्थिरता पावै चित्त ॥बोध उदय छिन छिन करे, जान्यो नित्य अनित्य ॥ ३१॥ . टीका:-नित्यप्रति युक्तियोंसे ब्रह्मके चिंतनरूप विचारके किये प्रतिक्षण बोधकी निःसंदेहता होवे है, ताते ब्रह्मात्माका अभेदरूप जो प्रमेय तामें चित्तकी स्थिति होव है, काहेते जिसने ऐसे जाना है।-नित्य कहिये ब्रह्मात्माका नित्यही अभेद है औ अनित्य कहिये बमात्माका भेद उपाधिकृत होनेते अनित्य है औ नित्य अर्थमेंही मुमुक्षुकी स्थिति होवै है यह नियम है।॥ ३१ ॥ ।
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy