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विचारमाळा.
वि० ४.
न होवे तोभी आनंदादि ऐश्वर्यवान् है, अथवा आनंदादिरहित है, आनंदादिक ऐश्वर्यवान होंवे तोभी आनंदादिक गुण है अथवा ब्रह्मात्माका स्वरूप हैं; इसते आदि लेके तत्पदार्थाभिन्न त्वंपदार्थविषे अनेक प्रका रका संशय है | वैसे केवल त्वपदार्थगोचर संशय भी आत्मगोचर संशय है: - आत्मा देह आदिकोंते भिन्न है
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वा नहीं, भिन्न कहै तोभी अणुरूप है वा मध्यम परिमाण हैवा विभु परिमाण है, विभु कहै तो भी कर्ता है अथवा अकर्ता है, अकर्ता है तोभी परस्पर भिन्न अनेक हैं अथएक है; इस रीति के अनेक संशय केवल त्वंपदार्थ -
: गोचर हैं । तैसे केवल तत्पदार्थ गोचर भी अनेक प्रका रके संशय हैं: - वैकुंठादि लोक विशेषवासी ईश्वर परि च्छिन्न हस्तपादादिक अवयवसहित शरीरी है अथवा शरीररहित विभु है, जो शरीरहित विभु है तो भी परमाणु आदिक सापेक्ष जगतका कर्ता है अथवा निरपेक्ष कर्ता है, परमाणु आदिक निरपेक्ष कर्ता कहे तो भी केवल कर्ता है अथवा अभिन्न निमित्तोपादानरूप कर्ता है जो अ
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