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वि०४.
ज्ञानसाधना
अनिष्ट आपादनका नाम तर्क है । सो यह है:-जीवरूप पक्षमें चेतनत्वरूप हेतु मानके ब्रह्माभेदरूप साध्य नहीं माने तो ब्रह्मके अद्वितीयताकी प्रतिपादक 'एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म' या श्रुतिसे विरोध होवैगा श्रुतिसे विरोध आस्तिक अधिकारीकू इष्ट नहीं, या अनिष्ट आपादनरूप तर्कके भयते ब्रह्माभेद रूप साध्यका अभाव वादी कहे नहीं । इस रीतीसे
शंका निवृत्त होवै है । इत्यादि युक्तियोंसे मनन होवै । है। मननसे निवर्तनीय संशय शास्त्रांतरमें इस रीतिसे
कहा हैः-संशय दो प्रकारका है, एक प्रमाणगत संशय है द्वितीय प्रमेयगत संशय है । प्रमाणगत संशय पूर्व कहा है । प्रमेय संशयभी आत्मसंशय औ अनात्मसंशय भेदसे दो प्रकारका है। अनात्मसंशय अनंतविध है। ताके कहनसे उपयोग नहीं। आत्मसंशयभी अनेक प्रकारका हैः-आत्मा ब्रह्मसे अभिन्न है अथवा भिन्न है, अभिन्न होवै तोभी सर्वदा अभिन्न है अथवा मोक्षकालमेंही अभिन्न होते है, सर्वदा अभिन्न नहीं, सर्वदा अभि