________________
संवत्सरी प्रतिक्रमण विधिसहित
(सामायिक आराधनाकी क्रिया है, आराध्य प्रभुकी आज्ञा प्रत्ये पूर्ण आदरभाव व्यक्त करना है, इसलिए यह क्रिया शक्ति हो तो खडे खडे करना चाहिए।
देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१)
( पानीका उपयोग किया हो तो मुहपत्तिका पडिलेहण करना। और आहार का उपयोग किया हो तो दो बार वांदणा देना।)
( किसी खास विधिमें प्रवेश करनेके लिए, मुहपत्तिका पडिलहेण आवश्यक है।)
मुहपत्ति पडिलेहणके २५ बोल १- सूत्र, अर्थ, तत्त्व करी सद्दहुं, २ - सम्यक्त्व मोहनीय, ३- मिश्र मोहनीय,
४- मिथ्यात्व मोहनीय परिहरे, ५- काम राग, ६- स्नेह राग,
७- दृष्टि राग परिहरे, ८- सुदेव, ९- सुगुरु, १०- सुधर्म आदएं, ११- कुदेव, १२- कुगुरु, १३- कुधर्म परिहरे, १४- ज्ञान, १५- दर्शन, १६- चारित्र आदएं,