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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
१७- ज्ञान विराधना, १८- दर्शन विराधना,
१९- चारित्र विराधना परिहरु, २०- मनगुप्ति, २१- वचनगुप्ति,
२२- कायगुप्ति आदएं, २३- मनदंड, २४- वचनदंड,
२५- कायदंड परिह. शरीरके अंगोके पडिलेहणके २५ बोल
(बायां हाथ पडिलेहता) १- हास्य, २- रति, ३- अरति परिहरुं
(दांया हाथ पडिलेहतां) ४-भय, ५- शोक, ६- दुर्गंछा परिहरुं
(स्त्रीओं ये बोल न बोले) (ललाट पडिलेहतां) ७- कृष्णलेश्या, ८- नीललेश्या, ९- कापोतलेश्या परिहरं
(मुख पडिलेहतां) १०- रसगारव, ११- ऋद्धिगारव,
१२- सातागारव परिहरुं (स्त्रीओं ये बोल न बोले) (वक्ष स्थल भाग पडिलेहतां) १३- मायाशल्य, १४- नियाणशल्य,
१५- मिथ्यात्वशल्य परिहरु.