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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(यहाँ दोनो हाथ जोडकर, मनमें, ३ नवकार गीनना)
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं,
नमो आयरियाणं,
नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो,
सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं || (१) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है |(१)
सामायिक लेनेकी विधि संपूर्ण